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20 Jun 2018 · 1 min read

चाहा तो है

मैं किसके सपने बुन-बुन कर
खुद को धन्य समझ बैठा था।
पता चला है आज वो मुझसे,
बचपन से बैठा ऐंठा था।
मैं अभिमानी, ओ!अज्ञानी
किसको जीवन समझ लिया था।
मधुरस के चक्कर में आकर
विष जीवन में घोल दिया था।
पर जो भी था, निज जुनून वह
तुमको पाने की अभिलाषा।
जिसकी चाहत से जगती थी
जैसे इस जीवन में आशा
पर इतना है बहुत संगिनी!
प्रेम उपजाया तो है।
टूट-टाट भी टूट-टूटकर
मैंने तुमको चाहा तो है।

विजय बेशर्म 9424750038

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