“माँ “
“बीती उम्र की किताबों से,यादों के पन्ने खोलूंगी,
बचपन की मीठी यादों के रस,कविता में घोलूँगी,
बचपन में रातों को जब नींद नहीं आया करती थी,
थपकी दे देकर माँ हमें सुलाया करती थी,
मीठी मीठी लोरी हमें सुनाया करती थी,
पढ़ लिख कर और खेल कूद कर,थक के जब सो जाते थे,
चुपके- चुपके रातों में मां पांव दबाया करती थी,
ज्वर या पीड़ा हो हमको तो,माँ रैना जाग बिताती थी,
दर्द भी कम हो जाता था,माँ प्यार से जब सहलाती थी,
पकवानों के थाल माँ, त्योहारों पर सजाती थी,
पहले हमें खिलाती फिर बाद में खुद खाती थी,
एहसान ये माँ बाप का है, सुख भोग रहे हम जीवन के,
धन्य भाग्य हमारे हम फूल हैं इस उपवन के,
कभी गलतियो पर बचपन में माँ डांट लगाया करती थी,देखा था कोने में बैठ फिर पक्षताया करती थी,
कुछ ही वक्त गुजरने पर, मां पास बुलाती थी,
सही गलत में भेद है क्या, माँ हमको समझाती थी,
कई बार हमारी गलती पर मां औरों से बातें सुनती थी,
दिल दुखता था उसका भी,पर हमको कुछ न कहती थी,
स्वस्थ रहें हम रहें सुरक्षित,यही दुआएँ देती हैं,
किस्मत वाले होते हैं जिनके संग माँ होती है,
मां बाप ही चारों धाम हैं, स्वर्ग है इनके चरणों में,
माँ बाप को भूल के क्यों उलझे हम पाखंडी कर्मों में,
हर मुश्किल घड़ी में खड़े हमारे साथ मिले,
कोटि -कोटि तुम्हें नमन प्रभु जो हमको ऐसे मां बाप मिले”