“राजनीति का व्याकरण”
“राजनीति का व्याकरण जरा अनमेल मेल है,इकलौती कुर्सी पर मची ठेलम ठेल है, आकड़ों से फिसली सत्ता तो जुगाड़ का खेल है,विरोधियों से दोस्ताना हुई नयी मेल है,राज़नीति का व्याकरण जरा अनमेल है,
जनता के नंबर में नेताजी फ़ेल हैं,साझा सरकार लिए हाथ में गुलेल है,साध रहे निशाना औरों पर,जिनकी पटरी से उतरी खुद की रेल है,राजनीति का व्याकरण जरा अनमेल है,
नेताजी की सुनी ये अजब कहानी है, घड़ा राजनीति का मिला खानदानी है,गठबंधन के कंकण भर कौवे को मिला सत्ता का पानी है,वाक्य हास्यपूर्ण हर बातें बचकानी है,घोटाले इनके याद सब जनता को मुंह जुबानी है,
बरगद सी फैली जड़े,एक लहर में उखड़ गयीं,
राजयोग की रेखा हथेली से फिसल गई,अब भाई चारे के शुरू झमेल है, राज़नीति का व्याकरण जरा अनमेल है,इकलौती कुर्सी पर मची ठेलम ठेल है “