नेताजी
नेता जी की जेब भर गई,जनता की रह गई खाली,
झूठे वादे सुनकर के जो बजा रही थी ताली,
सोची थी जनता शायद,बदलेगी व्यवस्था सरकारी,
संसद में ये नेता जी, रखेंगे समस्या हमारी,
आज ठगी-सी खुद को समझे,है जनता बेचारी,
देख रही है संसद में जब,कुर्सी से मारा मारी,
रिश्वतखोरी बढ़ा रहे हैं,सारे भ्रष्टाचारी,
सत्ता की खातिर जला रहे हैं धर्मों की चिंगारी,
जनता का तो कुछ नहीं बदला,
नेता जी पा गये बंगला गाड़ी,
नेता जी की जेब भर गई,जनता की रह गई खाली,
झूठे वादे सुन कर जो बजा रही थी ताली,
जीत मिली तो बोले नेता हम हैं सब के आभारी,
अब दर्द भूल गए जनता का,बन बैठे व्यापारी,
सुख सत्ता का वह भोग रहे,
जनता के दुःख में नहीं कोई साझेदारी,
चुन कर इनको सोचे जनता,यह गलती रही हमारी,
विदेश भाग गए अपराधी,लूट के संपत्ति सारी,
देख रही है जनता,अपने देश की यह लाचारी,
सोच लिया है जनता ने,जब आएगी बारी,
देशहित में मतदान करके,जीतेंगे बाजी हारी,”