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7 May 2018 · 1 min read

#ग़ज़ल-53

मीटर–122 122 122 12

दिए हैं हज़ारों सिले हार के
जलाके हृदय-दीप ये प्यार के/1

सदा मैं फ़िदा ही रहा हर क़दम
चला छोड़ सब साथ मैं यार के/2

न आया हमें तो कभी रूठना
खिले फूल-से भूल दिन ख़ार के/3

छुरी पीठ पर ना चलाना कभी
बहादुर बनो लाल ललकार के/4

चलो नेक बन ज़िंदगी में सदा
नज़र में रहोगे बने चार के/5

गिला कर न खुद पर कभी भूल से
मिटे मन बिना एक हथियार के/6

नमी आँख की ये कमी जान लो
दिखाती सही खेल लाचार के/7

पता पूछते हम कहाँ जा रहे
न जाने कभी राज ही द्वार के/8

मिले तो नहीं हम न मिलता ख़ुदा
चले हम सिरे तोड़ एतबार के/9

हसीं है जहां यार प्रीतम खरा
मिलें तोड़कर भेद दीवार के/10

-आर.एस.’प्रीतम’

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