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7 Feb 2018 · 1 min read

सरहद पर ख़ुशियाँ उतरें अब डोली में

भर दो खुशियाँ इक गरीब की झोली में.
खेलो कभी-कभी बच्चों की टोली में,

छोटी-छोटी खुशी मिलेगी तुमको ज्यों,
ढूँढ़ें बच्चे खुशियाँ आँख-मिचोली में.

किसको मिली खुशी है झगड़ों-टंटों से,
मिल जाती खुशियाँ इक मीठी बोली में.

कुछ खुशियाँ अनमोल मिलें यदि मानो तो,
गले मिलें जब ईद-दिवाली-होली में.

मानवता का यही तकाजा है ‘आकुल’,
सरहद पर खुशियाँ उतरें अब डोली में.

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