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6 Jan 2018 · 1 min read

फिर भी तन्हा

रात अचानक /ख्बाब में आकर मुझे जगा
कहने लगीं तुम
याद है ये सुबह /ऐसे ही पंछी
ये दरख्त /सबके सब मायूस हैं ये
बिन तुम्हारे और /मैं भी
होठों पे चिपकाये खुशियाँ /कब तलक भरमा सकूँगी
अपने दिल को
जानती हूँ मेरे हो तुम /मैं तुम्हारी
पर नदी के/ दो किनारों की तरह
हम साथ तो हैं /उम्र भर से
फिर भी तन्हा /फिर भी तन्हा…

विजय बेशर्म 9424750038

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