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11 Dec 2017 · 1 min read

“क़ता”

“क़ता”

हम भी आ नहीं पाए तिरे खिलते बहार में
तुम भी तो नहीं आए मिरे फलते गुबार में
इक पल को ठहर जाते कभी तुम भी पुकार कर
तो शिकवा न करती डगर बढ़ी ढ़लते किनार में॥

महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी

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