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31 Jan 2017 · 1 min read

बेवा का दर्द

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“बेवा का दर्द”
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सूना जीवन, बेदर्द बन गया !
दिखलाऊँ मैं ,किसको आज ?
सूनी माँग ! मन मेरा सूना !
जीऊँ या मर जाऊँ आज ??

हिम्मत टूटी ,चूड़ी फूटी ,
आस भी अब तो टूट गई !
गहने-चीर ,खाने को दौड़ें ,
किस्मत मेरी फूट गई !!

सास है कहती केश पकड़ ,
लाल मेरा क्यों खा गई ?
बंजर-मन-आँगन में मेरे ,
दर्द-वेदना समा गई ||

बोझिल दिन हैं ,कातिल रातें ,
तन्हाई से , करती बातें !
कैसे ? कितने ? जख़्म दबाकर ,
दु:ख में बैठी , काटूँ रातें ||

हे ! दीप कवि, ये दर्द मेरा ,
तू ना किसी को बतलाना !
ग़र हो कोई दर्द-ए-दवा ,
तुम पहले मुझको बतलाना ||

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(डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”)
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