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1 Feb 2017 · 1 min read

सरस्वती वंदना

गीतिका

भाव के शुचि पुष्प लेकर माँ खडे मैं द्वार पर।
अब कृपा कर दो भवानी पुत्र की मनुहार पर।

मोह के तम से घिरा जीवन भटकता ही रहा।
इस तिमिर का नाश कर दो ज्ञान के आधार पर।

तुम बडी करुणामयी हो अंक में लेती बिठा।
है भरोसा माँ मुझे इक आपके ही प्यार पर।

मूर्ति हो वात्सल्य की तुम सिंधु ममता का विशद।
ध्यान मत दो जान सुत मेरे अधम व्यवहार पर।

प्रार्थना है सुत इषुप्रिय की तुम्हारे सामने।
प्रेम से स्वीकारिये माँ कर कृपा लाचार पर।

अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’

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