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8 Nov 2017 · 1 min read

दिल ये हिंदुस्तान सरीखा लगता है

जीवन इक उन्वान सरीखा लगता है
बिन माँगा वरदान सरीखा लगता है

देख दूसरों को मन अपना फूंक रहा
हर इंसाँ श्मशान सरीखा लगता है

बाग़ बगीचे सिमटे क्यारी गमलों में
अब गुलशन गुलदान सरीखा लगता है

आँगन, चौखट, बँटवारे की भेंट चढे
सारा घर दालान सरीखा लगता है

जूझ रहा निज अन्तस के संघर्षों से
दिल ये हिन्दुस्तान सरीखा लगता है

रोज़ लिखे हर रोज़ मिटाये तहरीरें
बालक ये नादान सरीखा लगता है

ढूँढे है मासूम नफ़ा सम्बन्धों में
हर रिश्ता नुकसान सरीखा लगता है

मोनिका “मासूम

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