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30 Nov 2024 · 1 min read

“विचित्र दौर”

यह विचित्र दौर है, जहाँ पक्ष है और विपक्ष है, निष्पक्ष तो दुर्लभ (रेयरेस्ट ऑफ दी रेयर) है। अब तो ध्यान आकृष्ट करने का एक मात्र तरीका विरोध और उपद्रव करना है। भले ही वो विरोध और उपद्रव नाजायज ही क्यों ना हो? यही वजह है कि सिद्धान्त, मर्यादा, नीति और न्याय जैसे आदर्श नष्ट हो रहे हैं। इससे लोकतंत्र के स्थान पर तानाशाही तंत्र जनम रहा है। तानाशाही तंत्र कल्याणकारी कभी नहीं हो सकता।

आज निष्पक्ष और अच्छे इंसान सामान्यतः दिखाई नहीं देते। इसका एक बड़ा कारण जाति, वर्ग, धर्म, सम्प्रदाय को अन्ध समर्थन करना भी है। ये एक कहावत है : अंधा बाँटे रेवड़ी, अपने-अपने को देय। यानी अंधापन भी एक ढोंग है।

आज तथाकथित बड़े लोग सामन्तशाही पर उतर आए हैं। ऐसे में समाज सुधार, लोक नीति और लोक कल्याण की कल्पना करना व्यर्थ है। आइए अब हम पक्ष और विपक्ष के चक्रव्यूह से ऊपर उठकर निष्पक्ष बनें। जरा इन पंक्तियों पर गौर करें :

इस सजे-धजे संसार में मिलता हर सामान,
मुश्किल है बस मिलना एक भला इंसान।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।

Language: Hindi
Tag: लेख
4 Likes · 4 Comments · 120 Views
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