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4 Nov 2017 · 1 min read

?? चलो बढ़े भारत माता सिर मुकुट सजा दें??

ज्यों विपिन में सिंह गर्जना होती है,
ज्यों फणि पर मणि कान्ति चमकती है,
स्वश्रम से कुछ ऐसे ही निज संस्कृति पर दीप्ति सजा दें,
चलो बढ़े भारत माता सिर मुकुट सजा दें।।1।।
ज्यों सुरभि का पय पीत वर्ण की आभा दे,
ज्यों मयूर का नृत्य विवश कर मन को हर दे,
स्वश्रम से कुछ ऐसे ही निज संस्कृति को अटल बना दें,
चलो बढ़े भारत माता सिर मुकुट सजा दें।।2।।
ज्यों वेदों की वाणी मधुर कहाती है,
ज्यों गीता अपने उपदेशों में नवनीत बहाती है,
स्वश्रम से कुछ ऐसे ही निज संस्कृति को मधुर बना दें,
चलो बढ़े भारत माता सिर मुकुट सजा दें।।3।।
ज्यों रवि उगता नित्य नियम प्राची दिशि से,
ज्यों नदी समाती सागर में अविरल गति से,
स्वश्रम से कुछ ऐसे ही निज संस्कृति को अटल बना दें,
चलो बढ़े भारत माता सिर मुकुट सजा दें।।4।।
ज्यों तुलसी बाबा जीवन को सिखलाते मानस से,
ज्यों सूरदास प्रभु भगति सिखलाते पद गायन से,
स्वश्रम से कुछ ऐसे ही निज संस्कृति को भगति बना लें,
चलो बढ़े भारत माता सिर मुकुट सजा दें।।5।।

***अभिषेक पाराशर***

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