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12 Oct 2017 · 1 min read

दिनचर्या से विराम

…..दिनचर्या से विराम…..

जिंदगी की रोज की भाग दौड़
वो ही सूरज की पहली किरण से दिन का आगमन
दिन भर धुप छाँव के बीच रोजी रोटी की कश्मकश
और फिर अपनी लालिमा को समेटते
थके हारे ढलते सूरज से दिन के अंत का आगाज

रोज की दिनचर्या से
लेते हुए एक अल्पविराम
देखा, कलमों के बीच से झांकती सफेदी
न जाने कब, हौले हौले, फैल कर
दिखाने लगी अपना रंग
लगी एहसास दिलाने मेरी ढलती उम्र का

दिख रहे हैं
पेड़ पर शने शने, पीले होते पत्ते
जो बढ़ रहे हैं अपनी परिपक्वता की ओर
देने को स्थान नई कोपलों को
इंतजार है बस अब एक पतझड़ का

नई पीढ़ी भी
आगे आने को तैयार है
समय आ गया है करने को प्रस्थान
झांकने को अपने अतीत में
और करने को
अपने अच्छे बुरे का हिसाब किताब
धर्म कर्म और नेकी बदी का हिसाब किताब
और उसके साथ करने को उस परम पिता को प्रणाम ।

…विनोद चड्ढा…

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 536 Views
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