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3 Sep 2017 · 1 min read

छोड़ दें क्या

आएंगे अगर राहों में पत्थर तो दोस्तों,
क्या पथरीली जमीं पे हम चलना ही छोड़ दें।

बिखरी है कड़ी धूप तो छाया भी आएगी,
इस की तपत से डर के निकलना ही छोड़ दें।

बादल हैं गर्दिशों के और बिजली कड़क रही,
उसकी चमक से क्या मुंह बरखा से मोड़ लें।

जब चल पड़े हैं राह पर मंजिल भी आएगी,
क्या दूरियों के डर से हम बढ़ना ही छोड़ दें।

—रंजना माथुर दिनांक 04/07/2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना)
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