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2 Sep 2017 · 1 min read

इश्क की गलियों में जनाब दिल सच्चा सा लगता है

कुछ कच्चा सा लगता है
अभी बच्चा सा लगता है

इश्क की गलियों में जनाब
दिल सच्चा सा लगता है

उकूबत है इश्क में ग़ालिब
तभी दिल बिखरा सा लगता है

गुलशन होता है जहाँ सारा जब
गुलिस्तां भी विरह में उजड़ा सा लगता है

तब्दील है तबस्सुम भी आज की तारीख में
गमं आज तर्जुमान का तोफहा सा लगता है

तर्जुमान —– अनुवादक

तस्ववुफ़ है तसव्वुर में उनके
नदीम वो ख़ुदा सा लगता है

तस्ववुफ़—-सूफ़ीपन, रहस्यवाद

नग्मा सुनाये फिरता है जानी
जख्म अभी ताज़ा सा लगता है

जनाज़ा उठ रहा है चश्म-ओ-चिराग का
शायद इश्क में ठोकर खाया हुआ सा लगता है

चाह कर भी खामोश है अज़ीज़ अज़ाब में
इश्क के खुमार में डूबा हुआ सा लगता है

अज़ीज़—–प्रिय
अज़ाब—-दर्द,पीड़ा

आइना ही हकीकत दिखाता है
आईने से वो डरा हुआ सा लगता है

अलफ़ाज़ भी गुलाम है अब भूपेंद्र के
इख्लास भीअब इम्तिहान सा लगता है
इख्लास—-प्रेम

बेइलाज़ है ये इल्म अब भूपेंद्र का
इश्क में कल्ब चोट खाया सा लगता है

भूपेंद्र रावत
2/08/2017

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