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10 Aug 2017 · 1 min read

..... मोम-सा वो पिघलता ही रहा !

मोम-सा वो पिघलता ही रहा !
// दिनेश एल० “जैहिंद”

हाल-ए-जिंदगी पर सुबकता ही रहा ।।
चक्षु से झर-झर अश्क बहता ही रहा ।।

लिया कुछ नहीं सिर्फ दिया ही दिया,
दीया सा वो रात भर जलता ही रहा ।।

नज़रों के सामने से मोहब्बत लौट गई,
आँखें फाड़-फाड़कर वो देखता ही रहा ।।

सारा दर्द आँखियां मींचकर पी गया,
जश्न उसके उजाले में मनता ही रहा ।।

इश्क़ को हुस्न की कमी जब-जब खली,
खुद भी मोम-सा वो पिघलता ही रहा ।।

गिनने से सितारे शायद रात कट जाए,
के रात भर वो सितारे गिनता ही रहा ।

++++ मौलिक +++
दिनेश एल० “जैहिंद”
08. 08. 2017

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