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5 Aug 2017 · 1 min read

"मासूम" घर आँधी ने उजाड़ा नहीं कभी

सीने में आइने के तु झांका नहीं कभी
इसने भी राज़े दिल कोई खोला नहीं कभी

तेरे ही सामने हँसा तेरे वजूद पर
झूठा नहीं ये, सच तुही समझा नहीं कभी

झरने बयान कर गये गिरकर पहाड़ से
पत्थर कहे है झूठ वो रोया नहीं कभी

टुकड़े हुआ ज़मीं तेरी हर एक आह पर
तूने ही दर्दे आसमां जाना नहीं कभी

दीवार खोखली , पड़ी कमज़ोर नींव थी
“मासूम” घर आँधी ने उजाड़ानहीं कभी

मोनिका”मासूम”

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