Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
29 Jul 2017 · 1 min read

बचपन कितना सुंदर था

बचपन कितना सुंदर था,
खुशियों का समन्दर था,

जाे भी था पर अपना था,
लगता है एक सपना था,

उड़ने की एक चाहत थी,
रूठने की एक आदत थी,

कल्पनाओं में विचरते थे,
खिलौने के लिए मचलते थे,

अब खाेजते वाे बचपन,
उम्र हाे चुकी हैं पचपन,

अब गुनगुनाता हूँ गीत,
मिल जाये वाे मेरा मीत,
।।जेपीएल।।

Loading...