द्वन्द मेधावी का
द्वन्द हृदय में मचा हुआ,
“मेधा” मन समर को आकुल है,
इस समर में संगी होगा कौन
मन सोच रहा तन व्याकुल है।
यहाँ किसे पड़ी समझे दुविधा
मेधा का भविष्य क्या भावी है,
मेधा का दर्द वहीं जाने
जो सचमुच का मेधावी है।
मन तड़प रहा, नयना भीगे
क्या पड़ी जो मेधा कुछ सिखे
ये दें क्या उस अभिभावक को
जो रक्त बेच इनको सिंचे।
जो सपने अब तक थे इनके
उसपे आरक्षण हावी है,
मेधा का दर्द वहीं जाने
जो सचमुच का मेधावी है।
©®पं.संजीव शुक्ल”सचिन”