Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Jul 2017 · 6 min read

चकाचौंध महानगर की

चार दिन हो गये लेकिन उस कमरे का दरवाजा नहीं खुला, ना कोई गया। मुहल्ले में सिर्फ और सिर्फ़ यही चर्चा तमाम थी। हर शख्स किसी अनहोनी को सोच ससंकीत नजर आ रहा था। परन्तु खास बात यह थी कि कोई भी शख्स कमरे मे जाकर यह जानने का प्रयास नहीं कर रहा था कि आखिर माजरा है क्या?
वैसे आज की स्थिति को देखते हुये यह सही भी है आज कोई नहीं चाहता की उसका गला किसी अनजानी मुसीबत में फंसे।
मंगलू न चाहते हुये भी खुद को रोक न सका संका समाधान हेतु दरवाजा खोल अंदर प्रवेश कर गया।
अंदर का नजारा बड़ा ही मर्मस्पर्सी था। चार दिनों से भूखी प्यासी दो बच्चियाँ एक टूटी हुई छत- विछत चटाई पर लेटी हुई अश्रु पूरित नेत्रों से एक टक छत को घूरे जा रही थीं।
ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे ईश्वर से पूछ रही हों हमारा कसूर तो बतादो।
ये दोनों बच्चियाँ हरिया की थीं।
हरिया दुर्भाग्य का मारा एक रिक्शा चालक।
हरिया बिहार प्रान्त के दूरदराज इलाके में बसे एक छोटे से अभावग्रस्त गांव से था। एक गरीब परिवार में उत्पन्न हरिया के पास अपने बपहस संपत्ति के नाम पर एक जीर्ण – सीर्ण हो चले टूटे झोपड़े के सिवाय और कुछ न था। रोज दिन काम से जो मजुरी मिल जाती वही भरण पोषण का एक जरीया था लेकिन इस छोटे से गांव में प्रति दिन काम मिल भी नहीं पाता था।
हरिया का परिवार, हरिया उसकी मेहरारू सुगनी और दो बच्चियाँ फूलवा एवं विंदीया। फूलवा चार वर्ष की थी जबकि छोटी विंदीया तीन वर्ष की।
गरीबों के नाम भी ऐसे होते है कि जुबां पर नाम आते ही उनका गरीब होने का एहसास खुद बखुद होने लग जाये।
गरीबी किसी अभिषाप से कदापि कम नहीं होती। हरिया बहुत ही लगनशील व मेहनती इंसान था, कठिन से कठिन काम से भी कभी जी न चुराता या यूं कहें मरता क्या न करता।
अगर जी चुराता तो खुद क्या खाता और बीवी बच्चों को क्या खिलाता।
किन्तु समस्या ये थी कि काम प्रति दिन नहीं मिलने के कारण घर का चूल्हा हप्ते में चार हीं दिन जल पाता।
किसी ने सच ही कहा है इंसान परिस्थितियों का गुलाम होता है ,जीवन में जब जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो वह उससे तारतम्य बीठा ही लेता है।
एक बात जो खास थी इस परिवार में वह एक दूजे के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव। जहाँ प्रेम और समर्पण का भाव हो वहाँ कोई भी विपदा या किसी भी तरह की परिस्थिति अपना प्रभाव नहीं जमा सकती किन्तु अगर ये भाव किसी कारणवश समाप्त हो जाय तो समझ लीजिये सर्वनाश का श्री गणेश।
हरिया और सुगनी ने तो इस स्थिति से समझौता कर लिया था किन्तु बच्चियों का क्या?
कोई भी माँ बाप लाख विकट से विकटतम स्थिति में हों फिर भी अपने नवनिहालों को भुख से बिलखता. नहीं देख सकता।
वैसा इसे ईश्वरीय चमत्कार कहिये, प्रकृति की मार कहिये या फिर विधि की विडंबना लेकिन है ये परम सत्य गरीबों के बच्चे भी अपनी परिवारिक परिस्थितियों से सामंजस्य बीठा ही लेते हैं।
बालमन हठी होता है हठ करना ही तो इसका एकमात्र स्वभाव है। परन्तु गरीबी में पले – बढे बच्चे , सायद इनके शब्दकोश में हठ जैसा शब्द होते ही नहीं है। वैसे भी ये बच्चे अपने उम्र से कहीं बहुत पहले जिम्मेदारियों का बोझ अपने कंधे पर ओढ लेते है।
हरिया और सुगनी बच्चियों को भुख से बचाने का हर एक उत्तयोग करते लेकिन अपने दुर्भाग्य से लड़ने में खुद को अक्षम पाते। बच्चियाँ जब तक दूधमुहाँ थीं मा का सुखा स्तन चूस कर भी पेट भर लिया करतीं किन्तु अब वो थोड़ी बड़ी हो गई थीं।
अब उन्हें भी भूख मिटाने को अन्न चाहिए था।
उसी गांव का सुखिया आज दिल्ली से कमाकर गांव आया है, पूरे टोले टपारी में उसी की चर्चा है । सूना है बहुत सारा समान, ढेर सारा पैसा और घर के सभी जन के लिए जामा अपने साथ लाया है।
इस खबर से हरिया भी अछूता नहीं है। सभी उसे देखने उससे मिलने जा रहे है। हरिया के कदम भी उस ओर जिधर सुखिया का घर था अनायास हीं बढ चले।
पैसे एक इंसान की भाव भंगिमा, मनोवृती और रहन- सहन को किस हद तक बदल देते है सुखिया के हाव भाव से प्रत्यक्ष हो रहा है।
अंग्रेजी सूट बूट में सुखिया क्या गजब ढा रहा है,
कैसे इंग्लिश बोल वो सबको रिझा रहा है।
चेहरे की चमक ऐसी की आंख न टीके।
हरिया यहाँ आया तो था अपने दुर्भाग्य का सुखिया के माध्यम से हल ढूंढने किन्तु उसकी भाव भंगिमा देख उससे कुछ पूछ पाने की हिम्मत ही नहीं हो पा रही है।
अभाव इंसान से सब कुछ करा देती है, आखिरकार उसने सुखिया से अपने दिल्ली जाने औऱ काम करने की बात कर ही ली।
सुखिया ने थोड़े ना नुकुर के बाद उसे अपने साथ ले जाने की बात सहर्ष स्वीकार कर लिया।
हरिया बड़ा खुश था, खुश हो भी क्यों नहीं उसे जिन्दगी को नये सीरे से जीने का एक जरीया जो मिलने जा रहा था।
वैसे भी अंधे को क्या चाहिए दो आंखें।
एक ही हप्ते बाद सुखिया हरिया को लेकर दिल्ली चला आया।
अथक प्रयास के फलस्वरूप हरिया को एक कोठी में काम मिल गया, रहना खाना भी वहीं था। सर्वेन्ट क्वाटर में उसे एक कमरा मिल गया । हरिया ईमानदारी से अपना काम करने लगा , मेहनती तो वह था ही।
जैसे – तैसे दो माह ही बीते होंगे हरिया अपनी मेहरारू और बच्चियों को लीवा लाया।
अभावग्रस्त जीवन का अब अंत हो चला था, हरिया के दैनिकचर्या में तो कोई अमूलचूल परिवर्तन नहीं हुआ था किन्तु सुगनी के रंग ढंग बदलने लगा।अभावों से गुजर कर जब इंसान समृद्धि की तरफ कदम बढाने लगता है वहीं दौर उसके सोच के परिवर्तन का होता है, विचार परिवर्तन का होता है, संस्कार परिवर्तन का होता है, उसके जीवन पथ की तमाम दिशायें परिवर्तित होने लगती हैं।
कामयाबी, पैसों की चमक- धमक हर इंसान सम्भाले नहीं रख सकता। कुछ इसे सम्हाल कर निखर जाते हैं और जो नहीं सम्हाल पाता वे बिखर जाते है।
हरिया पर तो खैर पैसों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा परन्तु एक तो पैसो का नशा और महानगर की आबो हवा एक स्त्री के व्यवहार, स्वभाव परिवर्तन के लिए काफी थे।
सुगनी वैसे तो जन्मजात रूपवती थी किन्तु गरीबी के मार से जैसे उसके रूप को ग्रहण लग गये थे परन्तु जैसे ही उसके जीवन से अभावो का समापन और समृद्धि का श्री गणेश हुआ यकाएक उसका रूप लावण्य निखर कर प्रस्तुत हुआ।
जो कल तक तिरष्कृत थी आज आकर्षण का केन्द्र विन्दू बन बैठी। मनचले उसके आगे पीछे डोलने लगे।
हरिया जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा होने के कारण खुद के सारीरिक साज सज्जा पर कभी भी ध्यान न दे पाया ,परिणाम स्वरूप सुगनी का उसके प्रति आकर्षण कम होता गया और बाहरी आकर्षण आकर्षित करने लगी।
मैंने एक पुस्तक में पढा था सुन्दरता कभी न कभी संसार मे सर्वनाश का कारण बनती है।
सुगनी के कदम बहकते चले गये।
एक दिन ऐसा भी आया जब दो बच्चों की माँ अपने पति को अत्यधिक प्रेम करने वाली एक पत्नी एक गैर मर्द के साथ सबकुछ छोड़ छाड़कर चली गई।
हम अबतक शास्त्रों में पढते एवं बड़े बुजुर्गों से सुनते आये है कि पुत कुपूत हो सकता है किन्तु माता कभी कुमाता नहीं होती।
यहां तो सुगनी ने वर्षों की मान्यताओं व शास्त्रसंगत सत्य को झुठलाते हुये केवल अपनी सारीरिक छुधा मिटाने के लिया इतना घृणित कदम उढा लिया।
चार दिनन की चांदनी फिर वहीं घनेरी अंधेरी रात।
हरिया का जीवन जो कुछ पलों के लिए सवर गया था फिर से सबकुछ तहस नहस हो कर रह गया।
बदनामी के कारण हरिया ने स्थान परिवर्तन कर दुसरे जगह चला गया। वहाँ कोई काम नहीं मिलने के कारण भाड़े का रिक्सा चलाने को मजबूर हुआ। वह शराब का आदि हो गया सारा – सारा दिन शराब के नशे में धुत्त रहता।
फिर से जीवन नर्क बन गया । बच्चियों का तो और ही बुरा हाल था।
मंगलू को अंदर गये कुछ देर हो चला था बाहर खड़े तीन चार लोगों ने भी अंदर जाने का फैसला किया और अंदर आ गये ।
मंगलू बच्चियों को सम्हालने का प्रयास कर रहा था। दोनों हीं बुखार से तप रही थीं।
अंदर आये लोगों में से एक व्यक्ति ने यहाँ की स्थिति देख पुलिस को फोन कर दिया। पुलिस आई और बच्चियों को अपने साथ अस्पताल ले गई ।
आज कई दिन बीत गये परन्तु हरिया नहीं आया, बच्चियों को अनाथाश्रम में दे दिया गया।
दिन, महीने, वर्ष बीतते रहे हरिया का कोई पता न चला। आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास।
अब प्रश्न यह उठता है वह गांव की गरीब ठीक थी या महानगर की समृद्धि।
©®पंडित संजीव शुक्ल “सचिन”
******************************
नोट:- यह कहानी काल्पनिक है लेखक के गहन सोच का नतीजा। इसके पात्र, जगह, घटना सबकुछ काल्पनिक है। किसी भी अन्य घटना से इसका समानता अगर होता है तो यह संयोग मात्र है और कुछ नहीं।
आप सबको यह कहानी कैसी लगी अपना बहुमूल्य सुझाव देकर हमारा मार्गदर्शन करें। आपकी अति कृपा होगी।
जत हिन्द।
जय मेधा, जय मेधावी भारत।

Language: Hindi
2 Likes · 586 Views
Books from संजीव शुक्ल 'सचिन'
View all

You may also like these posts

मिट्टी है अनमोल
मिट्टी है अनमोल
surenderpal vaidya
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Santosh Soni
दोहा
दोहा
Sudhir srivastava
ज़िन्दगी लाज़वाब,आ तो जा...
ज़िन्दगी लाज़वाब,आ तो जा...
पंकज परिंदा
आदमी के भीतर
आदमी के भीतर
Kapil Kumar Gurjar
पद मिल जाए बिना प्रतिभा के तो धृतराष्ट्र बनते हैं( कुंठित लो
पद मिल जाए बिना प्रतिभा के तो धृतराष्ट्र बनते हैं( कुंठित लो
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
आज का युवा
आज का युवा
Madhuri mahakash
श्याम लिख दूं
श्याम लिख दूं
Mamta Rani
अजब गजब
अजब गजब
Akash Yadav
"नारी है तो कल है"
Pushpraj Anant
गीत - मेरी सांसों में समा जा मेरे सपनों की ताबीर बनकर
गीत - मेरी सांसों में समा जा मेरे सपनों की ताबीर बनकर
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जब में थक जाता और थककर रुक जाना चाहता , तो मुझे उत्सुकता होत
जब में थक जाता और थककर रुक जाना चाहता , तो मुझे उत्सुकता होत
पूर्वार्थ
बहुत कुछ बोल सकता हु,
बहुत कुछ बोल सकता हु,
Awneesh kumar
प्रकाश परब
प्रकाश परब
Acharya Rama Nand Mandal
*झूठी शान चौगुनी जग को, दिखलाते हैं शादी में (हिंदी गजल/व्यं
*झूठी शान चौगुनी जग को, दिखलाते हैं शादी में (हिंदी गजल/व्यं
Ravi Prakash
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"साल वन"
Dr. Kishan tandon kranti
"अपना"
Yogendra Chaturwedi
प्यार
प्यार
Kanchan Khanna
हुक्म
हुक्म
Shweta Soni
मैं तेरी हो गयी
मैं तेरी हो गयी
Adha Deshwal
कन्यादान
कन्यादान
Shekhar Deshmukh
3737.💐 *पूर्णिका* 💐
3737.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
नदी की बूंद
नदी की बूंद
Sanjay ' शून्य'
यथार्थ का सीना
यथार्थ का सीना
Dr MusafiR BaithA
कल तो नाम है काल का,
कल तो नाम है काल का,
sushil sarna
प्रलयंकारी कोरोना
प्रलयंकारी कोरोना
Shriyansh Gupta
तल्खियां होते हुए 'शाद' न समझी मैं उन्हें
तल्खियां होते हुए 'शाद' न समझी मैं उन्हें
Dr fauzia Naseem shad
अगर सोच मक्कार
अगर सोच मक्कार
RAMESH SHARMA
Happy New Year
Happy New Year
Deep Shikha
Loading...