Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 Apr 2017 · 1 min read

तेरी बेरुखी

तेरी बेरुखी
_________

“”तू अपने ग़म से आज़िज है
मैं तेरे ग़म से अफ़शुर्दा
तू है मशग़ूल औरों में
मैं तुझ बिन अश्क़ में गुम हूँ…

तेरा जो सर्द लहज़ा है
ये मेरी जान ले लेगा
तेरे इक अत्फ़ की ख़ातिर
आतिशे हुज़्न में गुम हूँ····

क्या है अस्बाब तेरी
बेरूखी का
किसको मालूम है
हमें तो लुफ़्त मिलता है
जो तू नज़र अंदाज़ करता है···

अज़ल तक हां रहे कायम
ये अपनी मुहब्बत है
मैं तो आज़िम हूँ इस तरह
मुहब्बत में तेरी ग़ुम हूँ···

न तेरी इज़्न की चाहत
न अब तेरी ज़फा का गम
जो है हरसूं खिजां तो क्या
नज़ारों में तेरी गुम हूँ···

न हो तेरी रज़ा तो क्या
मुझे है इक़्तिज़ा तेरी
किसी दिन तू भी पिघलेगा
वहम ए सोज़ में गुम हूँ···

तेरी इक दीद पाने को
कबसे मुंतिजर हूँ मैं
तेरा नज़रे करम होगा
हसीं इस सोच में गुम हूँ…””

©
Ankitak

Loading...