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30 Apr 2017 · 4 min read

रमेशराज के साम्प्रदायिक सद्भाव के गीत

धर्म का मतलब नहीं, ‘काटो गला’—1
——————————————–

गोलियों से गात छलनी यूं न कर
प्यार के जज़्बात छलनी यूं न कर।

इस तरह तू दुष्ट मत चाकू चला
धर्म का मतलब नहीं, काटो गला।
बो सके तो प्यार के कुछ बीज बो
धर्म की चादर के खूनी दाग धो ।

है शहीदों के तुझे खूं की कसम
देश के हालात छलनी यूं न कर।

खेल होली देख रंग-अबीर की
छीन मत किलकारियां कश्मीर की
सीख तू उपदेश गौतम बुद्ध के
बात मत कर तेग चाकू तीर की |

आस्था के सेब हैं मीठे बहुत
फूल टहनी पात छलनी यूं न कर।
गोलियों से गात छलनी यूं न कर।
——————–
-रमेशराज

ज़िन्दगी का हल नहीं हैं गोलियां—2
——————————————

देश को मत यूं घृणा के बिम्ब दे
दे सके तो आस्था के बिम्ब दे।
जो करे घायल हमारी आत्मा
हम न चाहें वह खुदा-परमात्मा
धर्म जो बस प्यार की पूजा करे
इस तरह की भावना के बिम्ब दे।

जिन्दगी का हल नहीं हैं गोलियां
कब सुलझतीं चाकुओं से गुत्थियां
मुस्कराती आंख के सपने न छीन
अधर को मत यातना के बिम्ब दे।

इस तरह तू और घायल मन न कर
टुकड़े-टुकड़े प्यार का आंगन न कर
हैं जुड़े रिश्ते इसी से प्यार के
इसको मधु संवेदना के बिम्ब दे।

जिन्दगी के वास्ते मृदुगान ला
फूल जैसे नेह ने उपमान ला
सिर्फ भावों के सहारे जी न यूं
तर्कमय आलोचना के बिम्ब दे।
———————
-रमेशराज

+-गीत-
लड़ो एकता के लिये—3
——————————–

कैसे हैं ये धर्म के भइया दावेदार?
जो करते इन्सान पर गोली की बौछार।

पहुंचाते निर्दोष को रोज अकारण चोट
स्टेशन बस, भीड़ में करते बम-विस्फोट
इनके मन पर खून का कैसा भूत सवार
मुस्काते ये देखकर बही रक्त की धार ।

लड़े एकता के लिये जीवन-भर जो लोग
टुकड़े हिन्दुस्तान के मांग रहे वो लोग |
जिनसे रक्षा की गयी इन्सां की हर बार
खूं की प्यासी हो गयीं क्यों वे ही तलवार?

जागो भारतवासियों तुमको है सौगंध
चोरी हो जाये नहीं फूलों से मकरन्द,
लूट न ले अपना वतन अब कोई मक्कार
करनी है रक्षा हमें बनकर पहरेदार।
——————————
-रमेशराज

यदि कविता की हत्या होगी—4
———————————–

धर्म एक कविता होता है
खुशबू भरी कथा होता है।

यदि कविता की हत्या होगी
किसी ऋचा की हत्या होगी।

गीता के उपदेश जलेंगे
नफरत के यदि बीज फलेंगे।

वेद-कुरानों बीच दर्द-दुःख
ढेरों आंसू बन्धु मिलेंगे।

इसीलिए अब भी तुम जागो
घृणा-भरे चिन्तन को त्यागो।

तम में सद्विवेक खोता है
धर्म एक कविता होता है।
——————————-
-रमेशराज

क्या यही धर्म है हमें बता—5
———————————-

चाकू लगा, किसी को गोली
बिछड़ गया बहिना से भाई
देख-देख तन खूं से तथपथ
विलख-विलख कर रोई माई
मांगों से सिन्दूर पुंछा
क्या यही धर्म हैं हमें बता?

तू क्या जाने मद का मारा
वतन कहे तुझको हत्यारा
कितने पाप किये होगा तू
जब उतरेगा तेरा पारा।।

हम सब जब भाई-भाई हैं
सबसे हंसकर हाथ मिला
भाईचारा अरे बढ़ा।
करता है तू क्यूंकर टुकड़े

भाव लिये क्यों उखड़े-उखड़े
जब तेरा है पूरा भारत
क्या हासिल हो लेकर टुकड़े
मत कर आंख असम की नम तू
अधरों पर कश्मीर न ला
मत नफरत की फसल उगा।
————————
-रमेशराज

नम हैं बहुत वतन की आँखें—6
—————————————–

हिन्दू-मुस्लिम बनना छोड़ो
बन जाओ तुम हिन्दुस्तानी,
अपना भारत महाकाव्य है
टुकड़ो में मत लिखो कहानी।

क्यों होते हो सिख-ईसाई
साथ जियो बन भाई-भाई,
धर्म नहीं वह जिसने सब पर
हिंसा के बल धाक जमायी।

रक्तपात यह हल देता है
बस हिंसक जंगल देता है,
जातिवाद का मीठा सपना
मानवता को छल देता है।

जब मजहब उन्मादी होता
बस लाशों का आदी होता,
चीत्कार ही दे सकता है
अमन देश का ले सकता है।

अतः धर्म का मतलब जानो
मानवता सर्वोपरि मानो,
नम हैं बहुत वतन की आंखें
इसके मन का दुःख पहचानो।
——————————
-रमेशराज

धर्म नहीं सिखलाता ‘मारो’—7
————————————–

जिसमें गोली की बौछारें
अपने ही अपनों को मारें,
जहां हुई मानवता छलनी
गातों पर चलती तलवारें
खूं में जहां नगर बसता है
धर्म नहीं वह तो पशुता है।

खाली होती मां की गोदी
जहां बहिन भाई को रो दी
प्यार और सद्भाव छोड़कर
जिसने केवल नफरत बो दी
चाकू जहां बदन डसता है
धर्म नहीं वह तो पशुता है।

धर्म नहीं सिखलाता-‘मारो’
जो अपने उनको संहारो
मानवता की पूजा सीखो
छुरी न आंतों बीच उतारो।
धर्म बात इतनी कहता है
धर्म नहीं होता पशुता है।।
————————
-रमेशराज

भाई-भाई को लड़वाया—8
———————————-
तू हिन्दू-हिन्दू चिल्लाया,
वो मुस्लिम बनकर गुर्राया
मूरख हो जो तुम दोनों को
असल भेड़िया नजर न आया।
डंकल प्रस्तावों के संग में अमरीका घर में घुस आया।।

तू कवि था पहचान कराता
उस असली दुश्मन तक जाता
जो हाथों से छीने रोटी
जनता की जो नोचे बोटी
लेकिन इन बातों के बदले मस्जिद-मंदिर में उलझाया।
अमरीका का घर में घुस आया।।

आदमखोरों के दल पै तू
चर्चा करता हर खल पै तू
पहले बस इतना कर लेता
सच के अंगारे भर लेता
लेकिन तूने बनकर शायर बस मजहब का जाल बिछाया।
अमरीका का घर में घुस आया।।

तुझको लड़ना था तो लड़ता
भूख गरीबी कंगाली से
लेकिन तूने रखा न नाता
कभी मुल्क की बदहाली से
तूने मंच-मंच पे आकर अपना फूहड़ हास भुनाया।
अमरीका का घर में घुस आया।।
मां को डायन कहने वाला
माना तूने रोज उछाला
उसके भी बारे में कहता
जो दाऊदों के संग रहता
बनी स्वदेशी जिसकी बानी मगर विदेशी रोज बुलाया।
अमरीका का घर में घुस आया।।
कण-कण में प्रभु की सत्ता है
उसका हर कोना चप्पा है
राम-मुहम्मद तो सबके हैं
तूने इनको भी बांटा है।
अमरीका से नहीं लड़ा तू, हिन्दू-मुस्लिम को लड़वाया।
अमरीका का घर में घुस आया।।
——————————-
-रमेशराज
————————————————————————–
रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001

Language: Hindi
Tag: गीत
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