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7 Apr 2017 · 1 min read

जान को मेरी....

??? ग़ज़ल ???
बह्र – 212 – 212 – 212 – 212

??????????

जान को मेरी अब यूँ निकालो न तुम।
आज सीने से मुझको लगा लो न तुम।

गश न आए मुझे जब हो तुम रूबरू।
इस क़हर से ख़ुदारा बचा लो न तुम।

देखकर के तुम्हें देखती रह गयी।
ये नज़र थोड़ा नीचे झुका लो न तुम।

हर तरफ हर जगह है तिरा अक्स ही।
गफलते जिंदगी को सम्भालो न तुम।

रूह की घाटियों में समाते हुए।
जिंदगी की भँवर से निकालो न तुम।

कश्मकश हो गयी है मिरी जिंदगी।
ज़ख्म भरने का मल्हम निकालो न तुम।

तेज अहसास मुझको करें बावली।
दिल मिरा अपने दिल से मिला लो न तुम।

??????????
© तेजवीर सिंह ‘तेज’✍

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