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31 Mar 2017 · 1 min read

तमाशा

हर कहानीकार तमाशा दिखाता है
चलता है कलम के संतुलन से
संवेदना और हकीकत के शिरो पर अटकी
लंबी पतली रस्सी पर
.
उसे कहनी होती है
हर वो एक बात
जो देखता है आस पास
स्वत: घटित हुई
तो कभी मजबूरी मे घटित की गयी
पर ठीक उसी तरह नहीं
एकांत की नींद का डर है इसमे
.
कल्पना की नाव पर चलते हुए
ध्यान रखना पड़ता है उसे
बह ना जाए कहीं
जिंदगी के गाँठ मे बंधी
उसकी अपनी खोज
जाने कब फिर कोई आए
दिखाने तमाशा दुनिया मे
.
हथियारों की दुनिया में,
प्रतिस्थापन की दुनिया में
करने अपनी भूख शांत वह
कलम से लड़ता है
प्रतिस्पर्धा के लिए लड़ता है
और अकारण ही मरता है
हर कहानीकार तमाशा दिखाता है।
.
©-सत्येंद्र कुमार

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