***** रेगिस्तानी काँरवा *****
(((( रेगिस्तानी काँरवा ))))
कितना विषम है मानव-जीवन,
है यह जीवन जीना बड़ा दुश्वार !
उस पर से ये रेगिस्तानी काँरवा,
कैसे होगी अब हमारी नैय्या पार !!
काश, हम भी इन ऊँटों के जैसा
कर लेते कुछ रुखा-सूखा आहार !
फिर तो हमारे भी दिन कट जाते,
बिन पिए पानी रब्बा माह दो-चार !!
राह निहारूँ अन्देखी मंज़िल कहाँ,
दिशाहीन अब मैं बढ़ता ही जाऊँ !
मृग मरीचिका-सा भटकाए मुझको,
घूम-फिर कर मैं तो पुन: यहीं अाऊँ !!
जैसे बन गए ऊँट रेगिस्तानी जहाज,
वैसे हम भी धरती के जहाज हो जाते !
सुफल हो जाता मानव जीवन जगमें,
दुख,कष्ट,संकट हमें ना कभी छू पाते !
दिनेश एल० “जैहिंद”
09. 01. 2017