समय बदलता तो हैं,पर थोड़ी देर से.
लड़ने को तो होती नहीं लश्कर की ज़रूरत
मातु शारदे करो कल्याण....
हाथ से मानव मल उठाने जैसे घृणित कार्यो को छोड़ने की अपील करती हुई कविता छोड़ दो।
लाभ की इच्छा से ही लोभ का जन्म होता है।
बज्जिका के पहिला कवि ताले राम
मृदा मात्र गुबार नहीं हूँ
बाल दिवस विशेष- बाल कविता - डी के निवातिया
मुक्तक
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
My thoughts if glances..!!
मेरी हर आरजू में,तेरी ही ज़ुस्तज़ु है