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4 Nov 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . . देह

दोहा पंचक. . . . . देह

कौन निभाता है भला, जीवन भर तक साथ ।
अन्तिम घट पर छूटता, हर अपने का हाथ ।।

तन में बजती डुगडुगी , साँसों की दिन -रात ।
क्या जाने कब नाद यह, दे जीवन को मात ।।

मौन देह से सूक्ष्म का, जब होता निर्वाण ।
अनुत्तरित है आज तक, कहाँ गए वो प्राण ।।

देह बंध को तोड़ कर, चला सूक्ष्म उस पार ।
मौन देह के साथ तो , बस काँधे थे चार ।।

आभासी संसार का, आभासी हर ठौर ।
यह दुनिया कुछ और है, वो दुनिया कुछ और ।।

सुशील सरना / 4-11-24

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