{{{{ इंसानीयत }}}}
(((( इंसानीयत ))))
हक़ीक़त जान कर भी क्यों अंजान हैं सब |
इंसानीयत मर चुकी है कैसे इंसान हैं सब ||
हो रहा है कैसा अमानवीय व्यवहार अब |
जगेगी आदमी की आदमीयत भला कब ||
एक बार बैठ कर विचार कर लो मेरे रब |
बर्बाद मिलेंगे हम आँखें खुलेगी तेरी जब ||
अंतर्रात्मा सो चुकी सील चुके हैं मेरे लब |
कलम अब टूट चुकी कैसे होगी क्रांति तब ||
सब जानते अपनी इस बर्बादी का सबब |
मगर नहीं है किसी को फिक्र नाहीं तलब ||
पकड़ी है इंसान ने जो दिशा वो हैं अजब |
चल पड़ा है मानुष जिस राह वो है गजब ||
वक्त अभी भी शेष है संभल जा मेरे मित्रो |
“जैहिंद” की सुन लो इस बार ये आर्यपुत्रो ||
दिनेश एल० “जैहिंद”
04. 01. 2017