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25 Mar 2017 · 1 min read

{{{{ इंसानीयत }}}}

(((( इंसानीयत ))))

हक़ीक़त जान कर भी क्यों अंजान हैं सब |
इंसानीयत मर चुकी है कैसे इंसान हैं सब ||

हो रहा है कैसा अमानवीय व्यवहार अब |
जगेगी आदमी की आदमीयत भला कब ||

एक बार बैठ कर विचार कर लो मेरे रब |
बर्बाद मिलेंगे हम आँखें खुलेगी तेरी जब ||

अंतर्रात्मा सो चुकी सील चुके हैं मेरे लब |
कलम अब टूट चुकी कैसे होगी क्रांति तब ||

सब जानते अपनी इस बर्बादी का सबब |
मगर नहीं है किसी को फिक्र नाहीं तलब ||

पकड़ी है इंसान ने जो दिशा वो हैं अजब |
चल पड़ा है मानुष जिस राह वो है गजब ||

वक्त अभी भी शेष है संभल जा मेरे मित्रो |
“जैहिंद” की सुन लो इस बार ये आर्यपुत्रो ||

दिनेश एल० “जैहिंद”
04. 01. 2017

Language: Hindi
423 Views

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