((( सबसे बढ़कर रोटी )))
सबसे बढ़कर रोटी
# दिनेश एल० “जैहिंद”
रोटी, कपड़ा चाहिए मकान
जीवन के लिए तीन सामान
रोटी के बिना सब निष्प्रान
सबसे बढ़के रोटी प्रधान
बालक, युवा कोई भी जवान
ना कोई रोटी से है अनजान
रोटी ईश्वर का है वरदान
भूखे के लिए है ये भगवान
कोई रोटी के लिए तरसता
भूखा बेचारा कहीं है मरता
कोई खा – खाके तोंद फुलाए
कोई बैठा देखो मुँह लटकाए
कौन है ऐसा जो नहीं दौड़ता
रोटी के पीछे जो नहीं भागता
दिन कटता रोटी के चक्कर में
खून बहाता श्रम के टक्कर में
खुद तो गोल और पतली रोटी
गोल घूमाती दुनिया को रोटी
कहीं इसके लिए मुनिया रोती
कहीं रोज लड़ाई इसपर होती
रोटी, रोटी है ये कितनी छोटी
तृप्त करती भूख कोटि – कोटि
नमन् तुझे है शत्-शत् हे रोटी
ना रखना भूखा कभी हे रोटी
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