*** नादानी में नादानी कर बैठे ***
ग़ज़ल/दिनेश एल० “जैहिंद”
नादानी में नादानी कर बैठे |
अन्जाने में शैतानी कर बैठे ||
डूबे हम ऐसे आँखों में उनकी,,
मोहब्बत हम तूफानी कर बैठे ||
दिल की ये गलती थी या आँखों की,,
हम तो खुद से बेईमानी कर बैठे ||
गलती की मैंने तो अब क्या रोना,,
ना मानी माँ की मनमानी कर बैठे ||
था थोड़ा उनका भी दोष जरा मेरा,,
नादाँ दिल हम कुर्बानी कर बैठे ||
“जैहिंद” कभी उल्फ़त में ना पड़ना,,
घर की इज़्ज़त हम पानी कर बैठे ||
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