***छुआ-छूत का अंत ***
छुआ-छूत का अंत
#दिनेश एल० “जैहिंद”
सोनहो गाँव में हर जाति के लोग रहते हैं, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र | शुद्र जातियों में डोम, चमार, दुसाद आदि हैं |
वर्षों बीत गए, पर इस गाँव से छुआ-छूत और भेद-भाव की जातिगत बीमारी का अब तक अंत न हो सका |
आए दिन छुआ-छूत व भेद-भाव की कोई न कोई घटना घटती रहती हैं |
एक बार ऐसी ही घटना घट गई, कोहराम मच गया |
एक सज्जन जो लोहार जाति से थे, पांत में सभी लोगों के संग खाने को बैठे, पत्तल बँट चुकी थी, गिलास भी चल चुका था, एक व्यक्ति जो पानी का जग लिए घूम रहा था, लगातार पानी चलाए जा रहा था, जैसे ही उस सज्जन के पास पहुँचा, उसने उसे देखा और देखते ही भड़क उठा —- ” ह्हें ! मैं भोजन नहीं करूँगा|
आप लोग नीच जाति के लोगों के हाथों पानी चलवा रहे है, पता नहीं भोजन भी परोसवा रहे होंगे |”
इतना कहते हुए वह सज्जन व्यक्ति उठ पड़ा | चिल्लाने लगा — “वाह, आप लोग भोजन करवा रहे हैं या हमारी जाति-धर्म नाश रहे हैं ! साफ-सफाई का कोई ध्यान ही नहीं |”
भोजन करवाने वालों में से दो-चार के साथ बातचीत चल ही रही थी कि शोर सुनकर जगकर्ता महोदय वहाँ पहुँच गए और बात को संभालने की कोशिश की, पर बात बनी नहीं |
तभी वहाँ उस पंचायत के नव निर्वाचित मुखिया महोदय पहुँच गए अपने दल-बल के साथ, जो जाति से ब्राह्मण थे और विवाह समारोह में आमंत्रित थे |
उन्होंने उस सज्जन को समझाया-बुझाया, फिर अपने साथ पांत में बैठाया और अपनी जाति और हिंदु-धर्म का हवाला देकर भोजन ग्रहण करने को कहा, वह लोहार सज्जन मान गया |
पानी चलाने वाला वही व्यक्ति था | परिस्थितियाँ अब सामान्य हो चुकीं और खाते-खाते वह सज्जन सोचने लगा कि,
“हिंदु-धर्म के सर्व श्रेष्ठ होकर हमारे मुखिया जी जब छुआ-छूत को नहीं मानते हैं तो फिर मैं क्यूँ……. !!!”
इस घटना का कमाल देखिए,…….
उस गाँव से छुआ-छूत व भेद-भाव का सदा के लिए नामो निशां मिट गया |
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