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24 Jan 2017 · 1 min read

आजकल हवा बदली है

आजकल
हवा बदली है
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आजकल
हवा बदली है
हवा में कुछ घुल गया है
मनुष्य के विकास के कण
अब धरती से उठकर आसमान में उड़ने लगे हैं
काले चारकोल की रोड ,बड़ी बिल्डिंग, बड़े-बड़े लोग
अपने पीछे
छोड़ते हैं
धुआं, धूल और कचरे का गुबार
विकास के प्रतिमान के इन परमाणुओं ने
अब सांसे रोक दिया है
मुंह और नाक पर लगाए मास्क लोग
किसी तीसरी दुनिया के प्राणी होने का एहसास करा रहे हैं
गैस चेंबर में विचरते लोगों को
अब गांव का खपरैल मकान याद आ रहा है
हमेशा दूसरों को दोष देने वाले खुद को भी देख लें
कुछ सुधार ले अपनी आदते
नहीं तो
अब हवा भी खरीदनी पडेगी बोतलो में

शैलेंद्र कुमार भाटिया

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