*आए यों जग में कई, राजा अति-विद्वान (कुंडलिया)*
कविता मेरी कच्ची है
पूनम 'समर्थ' (आगाज ए दिल)
तू लाख छुपा ले पर्दे मे दिल अपना हम भी कयामत कि नजर रखते है
ज़िंदगी में एक वक़्त ऐसा भी आता है
क़िताबों से सजाया गया है मेरे कमरे को,
आप गुनेहगार हैं! लड़कियाँ गवाई नहीं देती।
डिजिटल अरेस्ट: ठगी का नया फंडा
महामानव पंडित दीनदयाल उपाध्याय
अनजाने का ठीक है,अनजाना व्यवहार
बहुत नफा हुआ उसके जाने से मेरा।
धोखा दूसरा नही देता हे हमें
तेरे संग एक प्याला चाय की जुस्तजू रखता था
ईश्क में यार थोड़ा सब्र करो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
वर्तमान साहित्यिक कालखंड को क्या नाम दूँ.
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम