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5 Jan 2017 · 1 min read

गजल

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
काफिया आम
रदीफ होते हैं
मतला
वही अक्सर जमाने में सनम बदनाम होते हैं
दिलों पर जो बिना सोचे समझे कुर्बान होते हैं

शहीदों सी शहादत जब नहीं होती नसीबों में
सही है बात ,तारिख में वही गुमनाम होते है

खुशीयों से कहो ,घर आ ठहर जाएं ,हमेशा ही नहीं हाथों हमारे यों कभी भी जाम होते है

नजर अंदाज ना कर उस अदा को भी जरा देखो कबूतर के बंधे पावों कभी पैगाम होते हैं

मिला क्या रात दिन मुझको शरीफों सा जीकर जीवन
यही सच, होता उसी का नाम ,जो बदनाम होते हैं

रहे हम भी कभी उस वक्त के आशिक बड़े बंदन मोहब्बत की गली में उसकी’ चर्चे आम होते है

वंदना मोदी गोयल

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