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25 Dec 2016 · 1 min read

मासूम ख़्वाब..

कुछ यादें ताक पर धरी हैं,
झाङ-पोंछकर, चमका रखी हैं।

चंचल सी साँसें कई
इधर-उधर बिखरी पङी हैं।

जज़्बातों की लौ
सुलग रही है आले पर,

कुछ अल्हङ से अरमान
झूल रहे हैं फ़ानूस पर।

अहसासों की पोटली
टांग रखी है दीवार पर,

नटखट सा चेहरा तुम्हारा
खेल रहा लुकाछिपी।

किताबों के पन्नों के बीच कुछ दिन छुपे हैं,
जिन्हें ढूढ़ रही दो आँखें मेरी,

कुछ मखमली से दिन
और रेशमी रातों की झालरें भी सजी हुई हैं।

झरोखे से झाँक रहे हैं
कुछ मासूम ख़्वाब,

सम्भाल लेना इन्हें,
देखो, कहीं गिर ना जायें!

©मधुमिता

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