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24 Dec 2016 · 1 min read

मुहब्बत की बारिश

जिस बारिश के लिये हम कब से तरस रहे हैं ।

मुहब्बत के वो बादल हर दिल पर बरस रहे हैं ।

घूम फिर कर हमारी नजरें जिन पर अटक रहीं हैं ।

किसी ना किसी भंवरे संग वो भी मटक रहीं हैं ।

कई भीगे इस बारिश में तो कई इसमें डूबे हैं ।

हम तो कब से प्यासे इस वीराने में सूखे हैं ।

शायराना अंदाज में जब किसी को इकरार ऐ इश्क सुनाया ।

जबाब मिला बस यही और कितनों पर ये पैंतरा आजमाया ।

कोई तो होगी क्योंकि है यह रब की कारीगरी ।

मिलेगी हमको हमराही जो करेगी हमारी बराबरी ।

हमारे इस वीराने में जब कोई पतझड़ बनकर आयेगी ।

मौसम सारा झूमेगा दिल के हर कोने में हरियाली छायेगी ।

सारी हया की रस्में कसमें तोड़ आयेगी ।

हमारी खातिर वो दुनिया छोड़ आयेगी ।

हमसे मिलने के लिये वो हर दीवारें फाड़ आयेगी ।

कसम से

बारिश तो क्या रेगिस्तान में भी बाढ़ आयेगी ।

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