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22 May 2024 · 1 min read

अच्छा लगना

मुझे अच्छा लगता है जब
मैं सूर्योदय से पहले उठ जाती हूं
गंगा किनारे सीढ़ियों में सूर्य उदय के लिए
आकाश की ओर टकटकी लगा कर देखती हूं
मुझे अच्छा लगता है जब
मैं चिड़ियों की आवाज के साथ कुछ गुनगुनाती हूं
कभी तितलियों के लिए अपनी बाहें फैलाती हूं
मुझे अच्छा लगता है जब
मैं अपनी बगिया से पुष्प चुन-चुन कर
शिवलिंग पर चढ़ाती हूं
नित्य नए ढंग से पुष्प लगाकर घंटों निहारती हूं
मुझे अच्छा लगता है जब
सुबह के कुछ क्षण अपने लिए निकाल कर
योगा करती हूं और ओम ध्वनि में घुल सी जाती हूं
मुझे अच्छा लगता है जब
मैं अंतर्मन से कोई कविता बनाती हूं
और अनकही बातें कविता में कह जाती हूं
मुझे अच्छा लगता है जब
अब उम्र बढ़ने के साथ प्रेम परिपक्वता लिये
नजदीकियों और बढ़ जाती है
एक दूसरे के बिना जिंदगी नहीं चल पाती है

मौलिक एवं स्वरचित
मधु शाह (१७-१०-२२)

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