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5 Dec 2016 · 1 min read

खुश्बुएँ प्यार की।

खुश्बुएँ ये प्यार वाली फिर लुटाने दो मुझे।
साख अपने इस वतन की अब बचाने दो मुझे।।

जो अमन के नाम पर भी बन चुके धब्बा उन्ही।
दुश्मनों का आज फिर से सर झुकाने दो मुझे।।

मजहबों में बांटते है मुल्क को कुछ लोग अब।
मीर को इकबाल को फिर गुनगुनाने दो मुझे।।

आपको बोनी है नफरत आप नफरत बोईये।
आरती अजआन दोनों को मिलाने दो मुझे।।

रोकना बिलकुल नहीं तुम ये अमन का कारवां।
राह पर इंसानियत की पग बढा़ने दो मुझे।।।।

आ रही हैं आंधियां औ साथ में तूफान है।
“दीप” इक उम्मीद का फिर से जलाने दो मुझे।।

प्रदीप कुमार

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