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8 Nov 2016 · 1 min read

एक कल्पना प्रकृति का प्रकोप

निज स्वार्थ वश मानव ने वायु को दूषित किया ,
पर्यावरण को शोषित किया
जब विश्व में इसके परिणाम ने हाहाकार मचाया ।
तब भी निज स्वार्थ के कारण मानव इसे रोकने पे आया ।।
पर अब भी केवल स्वार्थ वश वो अपनी आदत से मजबूर है।
परिणाम इसका भयावह नजरों से अब ना दूर है ।।
प्रकृति से छेड़छाड़ कर हाल सबका बेहाल है ।
कहीं वायु हुई जहरीली कहीं पानी काल है ।।

– नवीन कुमार जैन

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