बनें सभी सत्पथ अनुगामी ::: जितेंद्रकमलआनंद ( पोस्ट११९)
गीत
व्यर्थ की हठता ,आज विवशता, कल परवशता मत रोये
क्षणिक सुखोंके लिए विवश हो, पल अनगिन अनमोल गये ।।
काम- क्रोध ,ममता विष त्यागें ,हम विषयों को विष समझें ।
अपने मन पर करें नियन्त्रण ,हम विवेक पौरुष समझें।
पराशक्ति कहती अपरा से मुस्काती जाते- जाते ।
हम परहितार्थ या जनहितार्थ ये वातायन खोल गये ।।१!
शेष रहा जो उसे सम्भालो ,सॉसोंमें चंदन महके ।
भूल अतीत ,भविष्य सँवारों ,खुशियोंसे जीवन चहके।
बने वृक्ष- वट जीवन ऐसा छाया को देने वाला ।
सुरभि भरीभरी मारुत बतियाये, पल्लव- पल्लव डोल गये।।२!!
—- जितेन्द्र कमल आनंद