कवि का केवल कर्म नहीं हैं ,कविता ::: जितेंद्रकमलआनंद ( पोस्ट८५)
कवि का केवल कर्म नहीं है कविता करना ( गीत )
राष्टृ – सुरक्षा हेतु उसे भी आगे बढ़ना ।
उठो ! बहा दो , कोटि जनों तक मधुरिम धारा ।
सुनकर मोहित हो जाये जिससे जग सारा ।
हो पुनीत कर्तव्य , निहित मानव मंगल का ,
हमको अपना राष्टृ ‘ कमल ‘ प्राणों से प्यारा ।
चलो संगमन भाव लिये सबको ले सँग में ,
नहीं लक्ष्य है केवल सिंहासन पर चढ़ना ।।
दर्शन हो दृष्टव्य उच्च चिंतन हो ऐसा ,
सच्चाई के दर्शन हों , दर्पन हो ऐसा ।
राष्टृ , मनुज , श्रम और समय के प्रति हो निष्ठा ,
करे सुवासित जन – मन को चंदन हो ऐसा ।
रचनीएँ जो ओज , प्यार , लौंदर्य बिखेरें ,
मंत्र ऋचाएँ बनें चाहिए कवि को पढ़ना ।।
—— जितेंद्रकमलआनंद