कविकेगीत वसंतीऋतुमें पवने भीमनमोहितकरते( गीत)जितेंद्रकमलआनंद( पोस्ट७९)
गीत::
—— कविके गीत वसंतीऋतुमें पवने भी मन मोहित करते ।
ग्वाल – वाल ,राधिका – गोपियों से अंतस आनन्दित करते ।।
देख सूर्यको दिग्- दिगन्त छायी अरुणायी !
मोहन रंग रँगे ,फागुन प्रकटी तरुणायी ।
होली के घन गुलाल, बरसे ।
रंग विरंगे मोहित| करते । ।
मुरली मृदुस्पंदित श्रुति ,कृष्णा – जड़- चेतन में —
झूम — झूम प्रफुल्लित पुहुप ,- पराग ,मधुवन में।
कस्तूरी ,केसर ,चंदन प्राणों को प्रतिपल सुरभित करते ।
——- जितेंद्रकमलआनंद