सारंगों के नयन आज फिर भर आये:: जितेंद्रकमल आनंद( गीत)पोस्ट५३
गीत ::: सारंगों के नयन आज फिर भर अाये
—- अपने ही पग देख धरा के आँगन में –
सारंगों के नयन आज फिर भर आये ।।
कुम्हलायी कलियों की अन्तर्दाहों में –
मधुर गंध, मकरंद -; स्पंद की चाहों भरी ।
पर्णों के मुख गहन ऩदाकी की छाया ।
बल्ंलरियो ने मौन आतपी आह भरी ।
तरुओं को उन्मना देखकर कानन में —
सारंगों के नयन आज फिर भर आये ।।
जल कर जल की आस सरोवर अकुलाये ।
लगी डोलने पुरबाईविश्वास भरा ।
जंगल — जंगल जगी तृप्ति की अभिलाषा
स्स्मृति में कौंधा फिर से इतिहास हरा ।
सारंगों को सधा देख पद्मासन में —
सारंगों के नयन आज फिर भरसआये ।।
—;जितेन्द्र कमल आनंद