समर्पण:::: जो कलमकार पीते रहे हैं गरल ( ग़ज़ल) पोस्ट १८
समर्पण ::: ग़ज़ल
जो कलमकार पीते रहे हैं गरल
है समर्पित उन्हीं को सुमन ये कमल
राह तकते रहे आज तक जो चरण
उनके छालों का रिसना हुआ है सफल
आइना टूट कर अक्स बिखरा तो है
साधना पर मेरी कुछ तो होगा अमल
वेदना की दुल्हन बन गयी रागिनी
शूल की दोस्ती बन गयी है ग़ज़ल
एकता के लिए अग्रसर हो गये
खुशबुओं को लिए खिल रहा जब ” कमल”
—– जितेन्द्रकमल आनंद