Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 Oct 2016 · 1 min read

पीट कर मुझे तुम मर्द बनते हो

पीट कर मुझे तुम मर्द बनते हो, तनते हो मेरे ही सामने,
भूल गए उन वचनों को दिए थे जब आये थे हाथ थामने।

असली मर्दानगी मुझ पर हाथ उठाने में नहीं है जान लो,
अपनी कमी छिपाने को पीटते हो कायर हो तुम मान लो।

असली मर्द कौन होता है आओ तुम्हें मैं खोलकर बताऊँ,
कैसा होता है असली मर्द आज तुम्हें विस्तार से समझाऊँ।

सात फेरों के सातों वचनों को जो हर परिस्थिति में निभाये,
मान मर्यादा की रक्षा के लिए जो मौत से भी टकरा जाये।

उसके पेट को रोटी, तन को कपड़ा और दे छत सिर को,
मोती समझ व्यर्थ ना जाने दे जो उसके नैनों के नीर को।

प्रेमरस की बरसात करे, पल भर में गलती को माफ़ करे,
गृहलक्ष्मी समझ अपनी पत्नी को खुशियाँ जीवन में भरे।

असली मर्द पराई औरत को समझे माता, बहन के समान,
सुलक्षणा की बातों से टुटा या नहीं मर्द होने का अभिमान।

©® डॉ सुलक्षणा अहलावत

Loading...