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11 Oct 2016 · 1 min read

अंतर्मन में एक शोर मचा हुआ है

अंतर्मन में एक शोर मचा हुआ है,
स्वार्थ का शिकंजा कसा हुआ है।

दास्ताँ अधूरी रह जाती हैं आज,
वासना में मन ये जकड़ा हुआ है।

देखो रिश्ते नाते सब बौने पड़े हैं,
दौलत का चश्मा चढ़ा हुआ है।

मानवता रही नहीं लोगों में अब,
लालच में हर कोई धंसा हुआ है।

संस्कृति लहुलुहान हो गयी आज,
पाश्चात्य रोम रोम में बसा हुआ है।

कलम चापलूसी करने में लगी है,
ऐसा चाटुकारिता का नशा हुआ है।

देशहित की सोचता नहीं नेता कोई,
सत्ता सुख का चस्का लगा हुआ है।

मूर्खों की जय जयकार होने लगी,
समझदारों का अकाल पड़ा हुआ है।

सुलक्षणा मत लिखा कर इतना अब,
हर कोई अहम का पाठ पढ़ा हुआ है।

©® डॉ सुलक्षणा अहलावत

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