Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Sep 2016 · 5 min read

एक शख्स यह भी ( कहानी )

एक शख्स यह भी”
__________
रोज़ाना की तरह मैं उस दिन भी सुबह की सैर करके घर पर लौटा ही था कि याद आया चाय भी पीनी है इसलिए पास के दुकान से दूध लेने चला गया मैने अपने लिए एक दूध का पैकेट लिया और दुकानदार से पैसे कटवाकर वापस ले ही रहा था इतने में वहाँ पर एक अधेड उम्र का शख्स आ पहुँचा उसके कंधे पर एक फटा पुराना बैग लटक रहा था उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि शायद वह कुछ जल्दी में है क्योंकि उसके बाल भी बिखरे पडे थे कमीज़ भी उसकी कोई पुरानी सी लग रही थी, शायद एक आधा हफ़्ते से धोई नहीं थी , पैंट का चैन भी टूट कर एक तरफ़ को लटक रहा था, उसने बडी हडबडी से दुकानदार से कहा साहब मैने आपके कुछ पैसे देने थे मैं कल कुछ सामान ले गया था ज़रा देखो आपके बेटे ने कापी में लिखा होगा ! दुकानदार ने उसकी तरफ़ देखा और पुछा क्या नाम है तेरा?
अधेड शख्स – जी रघुनाथ
दुकानदार- क्या-क्या लिया था तूने और कितने पैसे देने थे ?
अधेड शख्स – जी साहब मैं कल आटा, चावल , और आधा बोतल तेल लेकर गया था और मैने आपके दो सौ तीस रुपैये थे ! दुकानदार आराम से कापी के पन्ने पलट-पलट कर और बगल में रखी गरमा-गरम चाय के मज़े ले रहा था ! दुकानदार सारे पन्ने पलट गया लेकिन उसे रघुनाथ का नाम नहीं मिला, काफ़ी समय बीत गया लगभग पंद्रह मिनट बीत गये थे मैने देखा वो शख्स पहले से ज्यादा जल्दी में लग रहा था कभी इधर देखता कभी उधर तो कभी दुकानदार के गलियारे में आखिरकर कह ही दिया – साहाब आप पैसे काट लीजिए क्योंकि मुझे देर हो रही है मुझे घर जाना है क्या पता अब मैं कभी आऊँ भी या नहीं , अपना हिसाब बाद में देख लेना बेटे को बता देना कि उन्होंने पैसे दे दिये ! उसके इतना कहने पर मुझे भी याद आया कि मुझे भी जाना है मैं झटपट से वापिस आकर अपना चाय नाश्ता करके तैयार हो गया और जल्दी से रेलवे स्टेशन पहुंच गया ! मैने घडी देखी तो अभी मेरी ट्रेन को आने में आधा घंटा बाकी था सोचा इतने में अखबार पढ लूँ, क्योंकि मुझे अखबार पढना बेहद पसंद है तभी एक अखबार वाला जो कि अक्सर ट्रेन में भी अखबार बेचने आते है उन्ही में से एक था मैने उन्हे अंकल पेपर देना कहकर आवाज़ दी और अखबार लेकर पढने लगा पढते- पढते बीच में अचानक मेरी नज़र एक शख्स पर पडी जो कि अपना सर पकडे ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था ! मेरी नज़र उस पर पीछे की तरफ़ से पडी तो ठीक से उसे देख न सका मैं फ़िर से अपना पेपर पढने लगा मगर वो इंसान मेरे से मात्र पंद्रह-बीस कदम के दूरी पर रहा होगा इसलिए उसकी रोने की आवाज़ मेरे कानो पर तीव्रता से पड़ रही थी , आखिरकर मैने अपना अखबार बंद करके मैं उस शख्स की ओर बढा , ज्यों ही मैं उसके सामने पहुँचा तो मैं भौचक्का सा रह गया क्योंकि यह वही शख्स था जिसे मैने सुबह दुकान पर देखा था ! मैं सोच में पड गया आखिर इसे हुआ क्या ? सुबह तक तो यह ठीक था खैर मैने उसके दोनो बांह पकडे और उन्हे थोडा उपर उठाकर पूछा- ताऊ कि हो गया रो क्यों रहे हो?
उसने मेरी आंखो में बस क्षण भर देखा होगा और फ़िर अपनी नज़रें नीचे कर ली ! मैने कुछ क्षण तक उनकी पीठ थपथपाई और फ़िर जाकर वह कुछ शांत से हूए ! मैने पूछा क्या बात है? क्यों रो रहे हो सब ठीक तो है ? क्या हुआ सुबह तो आप बिल्कुल ठीक थे! इतने में वो क्षीण करुणा भरी आवाज़ में कहने लगे बेटा उस दुकानदार के चक्कर में मेरी ट्रेन छूट गई और मुझे लखनऊ जाना था , आज की वो लास्ट ट्रेन थी और मेरे पास इतने पैसे नहीं कि मैं कल ट्रेन के लिए टिकट ले लूँ , उस बुढढे (दुकानदार) ने बेफज़ूल मेरा वक्त बर्बाद किया पहले तो उसे कापी नहीं मिली जिसमे मेरा हिसाब लिखा था मगर जब मैने उसे कहा कि पैसे काट लो अपना हिसाब बाद में देख लेना तो उसको न जाने क्या हुआ और कहने लगा बिहारी हो झुठ बोलते हो हां, तुमने दो सौ तीस रुपैया नहीं बल्कि ज्यादा पैसे देने होंगे रुको बेटे को आने दो फ़िर हिसाब होगा ! मैने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि नहीं मैने बस आपके इतने ही पैसे देने हैं और कृपया आप अपना पैसे काट लो , मुझे वैसे भी देर हो रही है . . जबकि वो बिल्कुल अपनी ज़िद पर अडा रहा तब जाकर अटठहारह-बीस मिनट बाद उसका बेटा आया फ़िर बेटे के कहने पर उसने पैसे काटे और इस तरह मुझे आने में देर हो गई और मेरी ट्रेन छूट गई ! इतना कहने के बाद वह मायूस सा चेहरा बनाए चुप हो गया मेरे पास उस वक्त बहुत कम पैसे थे और जो थे भी वो किसी खास काम के लिए थे ! आखिरकर मैने उसका मन बहलाने के लिए कहा कि आपने उसके पैसे क्यों दिये? वैसे भी आपको अब यहाँ आना ही नहीं है तो अगर उसके पैसे न भी देते तो क्या था ! इससे आपके पैसे भी बच जाते और आपकी ट्रेन भी नहीं छूटती ! उसने बडे आक्रोश के साथ मेरी आखो में आखे डालकर कहा नहीं मैं भले ही गरीब हुँ मगर मेरे मां-बाप ने मुझे हमेशा सही और नेक रस्ते पर चलना सिखाया है मै भले ही भूखा – प्यासा रह जाऊँगा लेकिन कभी किसी की चोरी या किसी का कुछ नहीं मार सकता ! इतना सुनकर मुझे बडा अजीब लगा सोचा मुझे ऐसा पूछकर उसका मन नहीं लेना चाहिए था , खैर! मैने कहा अब कैसे जाओगे कहने लगे दो-चार दिन कहीं किसी होटल वैगरह में काम करूँगा कुछ पैसे हो जायेंगे फ़िर चला जाऊँगा ! इतने में मेरी ट्रेन भी प्लेट्फ़ार्म पर आ पहुँची मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं थे इसलिए पचास रूपए का नोट निकाल कर मैने उसे थमाना चाहा मगर उसने साफ़ इंकार कर दिया ! क्योंकि उसने अपनी व्यथा पहले ही बता दी थी इसलिए मैने ज़ोर-ज़बरदस्ती भी नहीं की और अंतिम समय मैने उसे हाथ जोडकर उसके हाथो पर अपने हाथ मिलाकर चल पडा, चार-पांच घंटे में मैं अपने गन्तव्य पर जा पहुँचा मगर उन चार-पांच घंटो में मुझे उस सच्चे शख्स की वो बाते सब याद आती रही कि . . कितना सच्चा और दलैर बन्धा था वो भी ! #काश में उसके लिए कुछ कर पाता इतना सच्चा इंसान होने के वाबजूद उस दुकानदार ने उस पर शक किया ! जबकि ऐसा कतई नहीं था ,मैं आज भी नमन करता हूँ उस सच्चे शख्स को – कुछ लोग वाकई में ऐसे भी होते है जो दूसरों के खातिर अपनी खुशी को ग़म में तब्दील कर लेते है !नमन है ऐसे महानुभाओ को ! आप भी किसी देशभक्त से कम नहीं ! बस दुख है कि काश मैं उसके लिए कुछ कर पाता !
-कई बार अक्सर ज़िंदगी में ऐसा होता है जो हम सोचते हैं वो होता ही नहीं , जो अंदाज़ा हम किसी के भेष, भूसा या बाहरी कार्यकलाप को देखकर उसको अपने अनुसार मानने लग जाते है #अक्सर वो गलत होता है ! हम किसी को देखकर उसके साथ रहकर कुछ समय बितए बगैर किसी का आंकलन नहीं कर सकते और यही सत्य है
_______________ #बृजपाल सिंह

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 465 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

रिश्ता
रिश्ता
Santosh Shrivastava
सपनों की उड़ान हो ऊँची
सपनों की उड़ान हो ऊँची
Kamla Prakash
बाबा चतुर हैं बच बच जाते
बाबा चतुर हैं बच बच जाते
Dhirendra Singh
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
इंद्रधनुष
इंद्रधनुष
Santosh kumar Miri
सजल
सजल
seema sharma
सारे आयोजन बाहरी हैं लेकिन
सारे आयोजन बाहरी हैं लेकिन
Acharya Shilak Ram
भले डगमगाओ /मगर पग बढ़ाओ
भले डगमगाओ /मगर पग बढ़ाओ
Dr Archana Gupta
जब भी तुम्हारा ज़िक्र आया।
जब भी तुम्हारा ज़िक्र आया।
Taj Mohammad
"प्रेम"
शेखर सिंह
किसी
किसी
Vedkanti bhaskar
" शान्ति "
Dr. Kishan tandon kranti
गिलहरी
गिलहरी
Kanchan Khanna
- पहला व सच्चा इश्क -
- पहला व सच्चा इश्क -
bharat gehlot
👌सीधी बात👌
👌सीधी बात👌
*प्रणय प्रभात*
इश्क़ जब बेहिसाब होता है
इश्क़ जब बेहिसाब होता है
SHAMA PARVEEN
नर से भारी नारी
नर से भारी नारी
shashisingh7232
कीमत
कीमत
Ashwani Kumar Jaiswal
नज़र चाहत भरी
नज़र चाहत भरी
surenderpal vaidya
सस्ते नशे सी चढ़ी थी तेरी खुमारी।
सस्ते नशे सी चढ़ी थी तेरी खुमारी।
Rj Anand Prajapati
हिंग्लिश में कविता (भोजपुरी)
हिंग्लिश में कविता (भोजपुरी)
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
ब्राह्मण
ब्राह्मण
Sanjay ' शून्य'
तुम आ जाओ एक बार.....
तुम आ जाओ एक बार.....
पूर्वार्थ
काट रहे तुम डाल
काट रहे तुम डाल
RAMESH SHARMA
*करिएगा सब प्रार्थना, हिंदीमय हो देश (कुंडलिया)*
*करिएगा सब प्रार्थना, हिंदीमय हो देश (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
Don't pluck the flowers
Don't pluck the flowers
VINOD CHAUHAN
कुंडलिया - गौरैया
कुंडलिया - गौरैया
sushil sarna
కృష్ణా కృష్ణా నీవే సర్వము
కృష్ణా కృష్ణా నీవే సర్వము
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
मैंने दुनिया की एक ही खूबसूरती देखी है,
मैंने दुनिया की एक ही खूबसूरती देखी है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
3382⚘ *पूर्णिका* ⚘
3382⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
Loading...