ये कोई तरीका है ….
ये कोई तरीका है …
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हर बार यही कहते हो…
“ये कोई तरीक़ा है प्यार करने का”
हर बार यही समझाते हो ….
“ये कोई तरीका है शिकायती होने का”
पर तुम क्यों नहीं समझ लेते एक बात
ये जो कुछ भी है …….
आशाएँ , अपेक्षाएँ …
तुम्हारे सानिध्य की लालसाएँ
तुम्हारी उपेक्षा से आहत आकुलताएँ
असुरक्षित से मन की छटपटाहतें
तुम्हारे ध्यान को चाहती निगाहें
तुमको ही हर क्षण में जोहती आहें
और इन सभी में निहित मेरी भावनाएँ
तुम क्यों नहीं समझ लेते मेरी उदासियाँ
बिन तेरे पल पल की मेरी तन्हाईयाँ
मेरी रुक्षता, मेरी तड़फ, मेरी लड़ाईयाँ
इन सभी की धुरी में तुम हो, तुम्हारा साथ है
कितनी ही बार कह चुके हम “चले जाओ”
“नहीं चाहिये तुम्हारा साथ ” “भूल जाओ”
पर सच पूछो मन से तो क्या हुआ ऐसा ?
क्या हो पाया ऐसा , नहीं ना !
होगा भी कैसे , इतनी शिद्दतें जुड़ी हैं
क्या अब भी यही कहोगे “ये कोई तरीका है”
हक़ जताने का , प्यार पाने का , प्यार करने का !!!!
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डॉ. अनिता जैन “विपुला”