पूस की ठंड और नंदलाला
पूस की ठंडी बियार चलत है,
ब्रज की धूप बिलोवन हार गई—
नीलो पड़्यो आज नंदलाला,
काया सारी जाकी काँपि गई।
दौड़ि-दौड़ि मैया घबराई,
वैद्य–ज्योतिष सब उपाय करें—
नजर उतारि, झाड़–फूँक धरे,
दुख की घटा न छंटने पावे।
नंदलाल को ताप न घटत है,
कैसी विपति लाला पर आई—
तन तपत है, श्वास जलत है,
मैया–बाबा की आँख भर आई।
ईशा देखत नंदलाला को,
मन में बात एक उपजाई—
लागे ज्यों ब्रजभानु की लाली,
आज ठंडे पानी में नहाई 🌼
~ ईशा सिंह यदुवंशी ‘यादवी’